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मेरा गीत

आ री सखी चलें फिर वहीं

आ री सखी चलें फिर वहीं
जहाँ पहली बार मिले थे
जहाँ सपनों की गलियाँ छूटी थीं
हक़ीक़त के दरवाज़े खुले थे

चाँद-तारों की बारात आयी है
हमारे इश्क़ पर सजदे करने
हल्के-फुल्के नये ख़ाब बुनने
हाथों में हाथ लेकर चलें
कच्ची बुनियादों से दूर रहें

आ री सखी चलें फिर वहीं
जहाँ पहली बार मिले थे
जहाँ सपनों की गलियाँ छूटी थीं
हक़ीक़त के दरवाज़े खुले थे

चाँदनी ही चाँदनी बिखरी हुई है
हर कहीं चारों तरफ़ देखो तो
सुनहरी मंज़िलें हैं फ़िज़ाएँ भी
क़दमों की चाप दबाकर चलें

आ री सखी चलें फिर वहीं
जहाँ पहली बार मिले थे
जहाँ सपनों की गलियाँ छूटी थीं
हक़ीक़त के दरवाज़े खुले थे

यह जाती बहारें कहती हैं
चल तू भी हमारे संग
तुझे ले जायें हम वहाँ
जहाँ कोई दूसरा कोई न हो
सिर्फ़ तू और तेरी महबूबा

आ री सखी चलें फिर वहीं
जहाँ पहली बार मिले थे
जहाँ सपनों की गलियाँ छूटी थीं
हक़ीक़त के दरवाज़े खुले थे

आ साथ चलें इन बहारों के
उस मंज़िल तक बिन राहों के
आ दूर बहुत दूर चलें जायें
दुश्मन दुनिया की निगाहों से

आ री सखी चलें फिर वहीं
जहाँ पहली बार मिले थे
जहाँ सपनों की गलियाँ छूटी थीं
हक़ीक़त के दरवाज़े खुले थे


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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