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मेरा गीत

आइने में जब देखा, ख़ुद को पाया है कमशक्ल

यह ना जानूँ मैं जानाँ के क़ाबिल हूँ या नहीं
इक अरसे से दौरे-मोहब्बत में गिरफ़्तार हूँ मैं
बाइसे-सोज़े-दिल जो खुला, तुम्हारा तस्व्वुर था
नहीं जानता कि हूँ क्या मगर तेरा प्यार हूँ मैं

दौलते-जहाँ से क्या मिलेगा बिना तेरे मुझको
देख समन्दरे-दर्द को ख़ुद दर्द बेशुमार हूँ मैं
न सहर देखी कोई’ न कोई शाम देखी है मैंने
तेरे बाद सोज़े-दिल से बहुत बेइख़्तियार हूँ मैं

ख़ालिक से हर दुआ में मैंने माँगा है तुझको
मुझे तेरी चाह है तेरे प्यार का तलबगार हूँ मैं
जीता हूँ इस आस पे इक रोज़ मिलूँगा तुमसे
अपने मर्ज़े-दिल का ख़ुद ही ग़म-गुसार हूँ मैं

आइने में जब देखा, ख़ुद को पाया है कमशक्ल
क्या करूँ जैसा भी हूँ तुझपे जाँ-निसार हूँ मैं
ज़रूर बयाँ करूँगा अपना अरसे-मुहब्बत तुझसे
ना करूँ अगर तो भी कहाँ मानिन्दे-बहार हूँ मै


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

17 replies on “आइने में जब देखा, ख़ुद को पाया है कमशक्ल”

बहुत प्यारी अभिव्यक्ति है…इस सादगी पे कौन ना मर जाए ऐ खुदा…
नीरज

आइने में जब देखा, ख़ुद को पाया है कमशक्ल
क्या करूँ जैसा भी हूँ तुझपे जाँ-निसार हूँ मैं
ज़रूर बयाँ करूँगा अपना अरसे-मुहब्बत तुझसे
ना करूँ अगर तो भी कहाँ मानिन्दे-बहार हूँ मै
बहुत सुंदर, आप की गजल का हर शेर लाजबाब है.
धन्यवाद

आइने में जब देखा, ख़ुद को पाया है कमशक्ल
क्या करूँ जैसा भी हूँ तुझपे जाँ-निसार हूँ मैं
ज़रूर बयाँ करूँगा अपना अरसे-मुहब्बत तुझसे
ना करूँ अगर तो भी कहाँ मानिन्दे-बहार हूँ मै
बहुत ही बढ़िया .
मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामना

देर से आने के लिए मुआफी विनय भाई,
पढ़ तो सुबह ही लिया था मगर ठीक से नही थोड़ा जल्दी में था .. क्या उम्दा बात कही है आपने …बेहद उम्दा लेखा,,,,…बेहत खुबसूरत खयालात …ढेरो बधाई कुबूल करें….

अर्श

बहुत-बहुत शुक्रिया आप सभी मेहमानों का, मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ

मेरे तकनीकि ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं

—–नयी प्रविष्टि
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बहुत खूब विनय भाई, हरेक शेर गौर करने लायक है|

Thanks vinay ji. I am new one on wordpress, zyada nahi janti jo hai vo aap ke saamny hai.

“Apni suni hatheli ko dekh, hum khuda se keh baidey,
ek lakeer tere naam ki ismey banai hoti,
dosti hi bahut nahi ta-umar guzarney ke liye,
uskey hatheli me bhi mere naam ke ek lakeer banai hoti”.

Manju”Mahiraj”

Mahiraj जी, आपकी पंक्तियों का आशय तो समझ आता है किन्तु यह मुझसे क्या कहती हैं, ज़रा मुझे समझने में दिक़्क़त हो रही। और हाँ यदि वर्ड प्रेस को लेकर कोई प्रश्न तो अवश्य पूछें।

Good Morng. Vinay ji,

Aaj aap ke blog me 2008 me likhey lekh nazar nahi aa rahe hai ” khud ko kamsakal paya” or 2008 me likhe ek kavita aapki (sorry naam bhul gai) fir se padni hai plz.

जी अभी 2008 में लिखा कुछ भी यहाँ प्रकशित नहीं है… अगर आप कमशक्ल वाला गीत पढ़ना चाहती हैं तो सर्च में ‘कमशक्ल’ लिखकर खोजिए मिल जायेगा, वैसे आप इसी कविता पर तो हैं!

Hai vinay ji,
Hindi pad download kar liya par abhi bhi sahi se kaam hi ho pa raha hai plz kuch batay iskeliya.

Dhanyavad!

Manju”Mahiraj”

आप किस साफ़्टवेअर का प्रयोग कर रही हैं, कैफ़े हिन्दी या हिन्दी पैड?
अभी मुझे लगता है आपको http://quillpad.com/hindi का ही प्रयोग करना चहिए,
एक हफ़्ते बाद कैफ़े हिन्दी का प्रयोग करिएगा!

Hello vinay ji,

abhi bhi hindi font sahi se kaam nahi kar pa raha hai. Aap se inspire ho kar kuch likha hai, aap ki tarha sabdo ka use to nahi aata par kosis ki hai. I would like to know vinay ji ki aap is blog me likhey hai ya fir koi book bhi published ke hain agar ha to hum zarror jaanna chahengy plz.

महिराज जी, तख़लीक़-ए-नज़र नाम से एक संग्रह प्रकाशन के लिए विचाराधीन है, जैसे ही बाज़ार में आयेगा! आपको ज़रूर सूचित करूँगा!

धन्यावाद!

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