आज हो या कल हो हम आपको ही चाहेंगे
कहता है जो कुछ मन उसको ही मानेंगे
आज हो या कल हो हम आपको ही चाहेंगे
चाहे दो कोई भी सज़ा हम आपके ही रहेंगे
चाहे हो कोई ख़फ़ा हम आपको अपना मानेंगे
यह दूरियाँ अपने दिलों के दरम्याँ न रखेंगे
सच कहती हैं आँखें जब आपको देखती हैं
राज़ दिल के खोलती हैं, इशारों में बोलती हैं
आज हो या कल हो हम आपको ही चाहेंगे
कहता है जो कुछ मन उसको ही मानेंगे
आज हो या कल हो हम आपको ही चाहेंगे
थोड़ा क़रीब और हमको आपके के आना है
इन दो आँखों में आपका ही ख़ाब सजाना है
सब कुछ भूल गया यादें नहीं आपके सिवा
गुस्ताख़ियाँ नादानियाँ जाने अनजाने होती हैं
जब-जब देखूँ आपको पता नहीं क्यूँ होती हैं
चाँद-सा चेहरा है आपका कैसे न हम देखेंगे
एक दिन भी कैसे बिन आपके हम काटेंगे
आज हो या कल हो हम आपको ही चाहेंगे
कहता है जो कुछ मन उसको ही मानेंगे
आज हो या कल हो हम आपको ही चाहेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९