आज फिर आसमाँ पे देखा चाँद, गुलाबी चाँद
आज फिर तेरी आँखों को देख्नने की ख़ाहिश हुई
आज फिर सुलगने लगे मेरी आँखों के आँसू
आज फिर बुझती हुई एक तमन्ना ने अँगड़ाई ली
चाँद हसीन था तेरे जिस्म-सा शामीन था
तेरे ग़म में यह कब मुझसे ग़मगीन था
रोज़ महकता था मगर सुनहरा था
आज कुछ ज़्यादा गुलाबी और गहरा था
आज फिर दिल के जज़्बात बह निकले दिल से
आज फिर उस मकान में तुम्हें देखने की ख़ाहिश हुई
आज फिर कुछ अजीब भँवर थे मेरी धड़कनों में
आज फिर नस-नस में लहू ने चिन्गारी जला दी
तुमसे मेरी मुहब्बत बहुत याद आ रही है
गुलाबी चाँद कह रहा है तू आ रही है
आ लौट आ अब लौट भी आ तू कहाँ है
तुमसे मेरे सपनों का यह हसीं जहाँ है
आज फिर आसमाँ पे देखा चाँद, गुलाबी चाँद
आज फिर तेरी आँखों को देखने की ख़ाहिश हुई
आज फिर कुछ अजीब भँवर थे मेरी धड़कनों में
आज फिर नस-नस में लहू ने चिन्गारी जला दी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १६ अप्रैल २००३
2 replies on “आज फिर आसमाँ पे”
very good thinking.
Most welcome @ my weblog Mr. Vijay!