आज फिर मुझको खिड़की से
दिख रहा है चाँद आधा-आधा
जिस तरह से मैं जी रहा हूँ
वो भी कहीं जी रहा है आधा-आधा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
आज फिर मुझको खिड़की से
दिख रहा है चाँद आधा-आधा
जिस तरह से मैं जी रहा हूँ
वो भी कहीं जी रहा है आधा-आधा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
5 replies on “आज फिर मुझको खिड़की से”
बहुत सुन्दर!!
bahut achhe …..
आपकी आमद का शुक्रगुज़ार हूँ…
har raat amavas nahi hoti
kisi dard mein majburi nahi hoti
ankhon ki khidhki se parda hata ke dekho
jindgi ki har cheej adhoori nahi hoti
samjhe window wale dost
समझ रहे हैं अश्विन तुम्हारी बातों को देखते हैं और क्या रंग है तुम्हारे शब्दों का!