आँखों से उतरा नहीं
एक चेहरा रातभर
तेरी ही यादें मुझको
आती रहीं रातभर
चाँद देखा था
उतरते हुए
सहर देखी थी
गिरते हुए
ख़्याल आते रहे
नींद जाती रही
जागे भी नहीं
सोये भी नहीं
बस तुझे ही
देखते रहे रातभर…
आँखों से उतरा नहीं
एक चेहरा रातभर
पानी पे देखा था
चेहरा चाँद का
ढूँढ़ते रहे रातभर
फिर वही मंज़र
हसीन शाम का
ढूँढ़ते रहे रातभर
गीली-गीली रेत पे
ढूँढ़ते रहे तेरे
पैरों के निशान
गये जिस डगर
देखें जिस नज़र
पायें तेरा नशा
ख़ुशबू उड़ी
साँसों में घुल गयी
रात की ओक में
जा गिरा,
सिरा शाम का
ढूँढ़ते रहे रातभर
आँखों से उतरा नहीं
एक चेहरा रातभर
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२