आसमाँ को आज उसका हक़ पहुँचा
यह तीर जो मेरे दिल तक पहुँचा
ज़ख़्म देकर जो उसका जी न भरा
दिल उसका मेरे दिल तक पहुँचा
ख़ुशी की प्यास बढ़ती गयी जब
मैं भी दर्द के हासिल तक पहुँचा
धुँआ-धुँआ है आँख मेरी अब रोज़
कि मैं अपने ही साहिल तक पहुँचा
हक़= truth, righteousness
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
2 replies on “आसमाँ को आज उसका हक़ पहुँचा”
BAHUT BADIYA LIKHA HAI KAISE ITNA BADIYA LIKH LETE HO
sab ishwar ki kripa hai!