अकेले हम हों कभी, अकेले तुम हो
और समन्दर का गुलाबी किनारा हो
तन्हाई में हम हों रुसवाई में तुम हो
तुमको मनाने का कोई बहाना हो
कुछ तुम कहो फिर कुछ हम कहें
दिल की धड़कनों का कहा दोनों सुनें
चाहे लम्हे रुकें चाहे लम्हे बहते रहें
मगर हम-तुम साथ हमेशा दोनों रहें
अकेले हम हों कभी, अकेले तुम हो
और समन्दर का गुलाबी किनारा हो
लहरें आती हों साहिल से मिल जाती हों
तुम पर लिखने का लिए अफ़साना हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९