अपनी जाँ वार जाऊँ तेरे नाम
चर्ख़ से आये न आये इल्हाम
हूँ रोज़े-अव्वल से तेरा दीवाना
मेरे लहू की ख़ू है इबराम
मुझे तो इख़लास सताये है
किसके हाथों भिजवाऊँ पैग़ाम
ये ज़मीं जन्नत हो गयी है
देखकर तुझ-सा गुले-अंदाम
गर तुम निबाहो मेरा साथ
मैं बनकर रहूँ तेरा राम
तुम आओ शफ़क़ कारगर हो
मैं देख पाऊँ शामे-अंजाम
गर महफ़िल हो इज़्ज़त मेरी
करूँ मैं सारी सब वहीं तमाम
दिल एक ही शरर में ख़ाक हुआ
हुस्ने-जानाँ है मेरी शोला-फ़ाम
दाग़ पे दाग़ खाऊँ जिगर पे
झेल जाऊँ सैकड़ों इल्ज़ाम
आपको पेशे-खिदमत है दिल
‘नज़र’ है आपका ही ग़ुलाम
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३