अश्क से पहले आँच उठती है
जब भी तुझपे आँख टिकती है
बाटे हुए सब वक़्त के धागे
पर उनमें अब गिरह दिखती है
थी कभी सीधी-सादी ज़िन्दगी
आज ही बिगड़ी हुई लगती है
निगेबाँ है मेरा पहला इश्क़
तो फ़िक्र मुझको ख़ाक चखती है
गर वह सोचे अश्क बुझते नहीं
रूखी-रूखी आँख मेरी हँसती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
5 replies on “अश्क से पहले आँच उठती है”
बाटे हुए सब वक़्त के धागे
पर उनमें अब गिरह दिखती है
थी कभी सीधी-सादी ज़िन्दगी
आज ही बिगड़ी हुई लगती है
subhan allah ye sher seedhe dil me utar gaye yar….
thanks anurag ji.
अश्क से पहले आँच उठती है
जब भी तुझपे आँख टिकती है
बाटे हुए सब वक़्त के धागे
पर उनमें अब गिरह दिखती है
थी कभी सीधी-सादी ज़िन्दगी
आज ही बिगड़ी हुई लगती है
wah bahut khub
shukriya mehek ji.
अश्क से पहले आँच उठती है
जब भी तुझपे आँख टिकती है
“bhut sunder abheevyektee’
Regards