बातों ही बातों में कोई बात हो
दिल से दिल की मुलाक़ात हो
नज़रों से नज़रें कहें कुछ
इनायत-ओ-इल्तफ़ात हो
आज की रात जो चाँदनी है
यह तेरे रूप की रोशनी है
संदली यह बदन तेरा
मुक़द्दस-ओ-कायनात हो
हैं झीलें दोनों आँखें तुम्हारी
सादा-सादा हैं प्यारी-प्यारी
हुईं काजल से ख़ुशरंग यूँ
जैसे सूरज ढले तो रात हो
बख़्त है सबा तुमको छुए
तेरी ज़ुल्फ़ से खेले, मचले
ख़ुशबाश में है गुंचाए-दिल
तुम जन्नत-ओ-हयात हो
गुलाबी पैमाने छलकते हैं
लबों पर अंगारे सुलगते हैं
पतंगा करे तेरी लब-बोसी
गर इख़लास-ओ-सबात हो
क़ुर्बां तेरे शोख़ी-ओ-नाज़ पे
मुआ जाऊँ तेरे एतराज़ पे
फ़साने में जाँ भर दी तुमने
यह कि अब इख़्तिलात हो
इल्तफ़ात= favour, friendship; मुक़द्दस= clean, pious; बख़्त= lucky; गुंचाए-दिल= bud of heart; लब-बोसी= kiss on lips; इख़लास= love, worship; सबात= constancy, endurance; मुआ= sacrifice; इख़्तिलात= love
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३