कुछ रिश्ते होते हैं बच्चों की होम-वर्क डायरी की तरह
हमने ग़म को पहना है दिल पर किसी ज़ेवर की तरह
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
कुछ रिश्ते होते हैं बच्चों की होम-वर्क डायरी की तरह
हमने ग़म को पहना है दिल पर किसी ज़ेवर की तरह
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
3 replies on “बच्चों की होम-वर्क डायरी”
हमने ग़म को पहना है दिल पर किसी ज़ेवर की तरह
‘ kya baat khee hai, ‘
regards
utar do us jewar ko jisse taklif ho
riste samjh aate hai,gam jab najdikho,
aur kuch riste aise hote hai,jaise udhte badal karib ho
e rab de koi sadka ab hame risto se aur na taklif ho
kyo dost is sher par “aapki” kuch achi tarif ho
बहुत-बहुत शुक्रिया सीमा जी! अश्विनी बाबू अपना एक ब्लॉग बना लो फिर बहुत मज़ा आयेगा!