मेरे बचपन की ख़ुशबू मेरे साथ ही चलती है
कभी मेरे ख़ाब में कभी किताब में मिलती है
कभी पतंगों के साथ आसमाँ में उड़ती है
कभी मालती की बेलों में महकती खिलती है
रुचि सोनल जूली नीता बिन्नू संजू पवन प्रीति सोना
जैसे नामों की बिखरी तस्वीर जोड़ते मिलती है
कभी स्कूल में अभय राजीव हर्पित को पूछती है
कभी सआदत गंज की गलियों में टहलती है
फाख़्ता और गौरैया के आशियानों से गुज़रते हुए
मेरे बाएँ पाँव का भँवर सहलाती टटोलती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२