बहते थे जो कल
आज वह पल ठहरे हैं
हम कल भी तेरे थे
हम आज भी तेरे हैं
ज़िन्दगी से शिकवा नहीं
मौत ने मोहलत दी है
तेरी इक झलक थी
जिसके लिए क़िस्मत बदली है
कल भी होश नहीं था
आज भी होश नहीं है
मगर तेरा चेहरा
पलकों में आज भी है
तुम ख़ुदा की इबादत हो
तुम उसकी इनायत हो
जो लिखी गयी शिद्दत से
तुम वह आयत हो
नज़र ढूँढ़ती थी
यह दिल बेज़ुबाँ था
हमने कहा नहीं
मगर तुमने सुना था
कल भी लड़खड़ाते थे पाँव
आज भी लड़खड़ाते हैं
पहले भी बेज़ार नज़र आते थे
अब भी नज़र आते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२