बता दर्द को पीना हो तो कैसे पियें
बिन तुम्हारे जियें तो कैसे जियें
अल्फ़ाज़ हलक़ में हैं ख़ामोश बैठे
अफ़साना यह पुराना किससे कहें
ख़ाहिश को तुम तक राह न मिली
बयाँ तुमसे अपना हाल कैसे करें
जुदा हैं तो रोये जाते हैं चश्मे-तर
बिना ख़ुशी के मुस्कुराया कैसे करें
समझा के हार गये दिल को हम
ज़ौरे-दिल और कब तक सहें
तुमको न देखा चाँद की बात न की
वह चाँदनी के किस्से किससे कहें
तेरी यही इक तस्वीर मिली है मुझे
अब तेरे लिए इल्तिजा ख़ुदा से करें
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३