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मेरी ग़ज़ल

उलझे हुए दिल में तेरी कमी-सी क्यों है

उलझे हुए दिल में तेरी कमी-सी क्यों है
क्या बात है आँखों में नमी-सी क्यों है

तेरी किस बात से यह दिल थम गया
दिल में हर धड़कन सहमी-सी क्यों है

क्या हुआ किस बात से ये दिल टूट गया
टूटे हुए दिल में ये नरमी-सी क्यों है

हमने देखा है तुम्हें हमें देखते हुए
चाहत में इतनी ग़लतफ़हमी-सी क्यों है

रूठे तुम तो फिर मानते भी नहीं हो
तेरे मिज़ाज में इतनी गरमी-सी क्यों है

Shayir: Vinay Prajapati Nazar
Penned on 01 January 2005

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मेरी ग़ज़ल

नम हैं आज तक यादों के सूखे पत्ते

मुझे क्या हुआ है मुझे कुछ पता नहीं है
क्या मेरे दर्दो-ग़म की कोई दवा नहीं है

यह उदासियों की शामें बहुत उदास हैं
मेरे नसीब में क्या मौसमे-वज़ा1 नहीं है

आफ़त यह हम पर टूटकर आयी है
इसे देखने को क्या कोई ख़ुदा नहीं है

सब आश्ना आज ना’आश्ना2 बन गये हैं
ऐ तीरगी3! मेरा कोई रहनुमा4 नहीं है

दिलचस्पियाँ जीने में ख़त्म हो गयी हैं
अब मेरी ज़िन्दगी में वह मज़ा नहीं है

हम हिज्र5 में रोज़ जीते-जी मर रहे हैं
जो हमपे आये क्या ऐसी कोई क़ज़ा6 नहीं है

हमें कब दोस्तों और दुश्मनों का डर है
करते हैं इश्क़ वो जिनको हया नहीं है

कब से बंजर पड़ी है मेरी आँखों की ज़मीं
इनपे छीटें उड़ाता अब्र7 कोई गया नहीं है

मुझे चुप देखके जो मेरा हाल पूछते हैं
कहता हूँ यही इक बात कुछ हुआ नहीं है

देखा गैरों का ढब और दोस्ती का पास भी
किसी भी दिल में मेरे लिए दुआ नहीं है

हम तमाम शब जलते हैं तेरी ख़ाहिश लिए
मेरी निगाह ने कोई रुख़ छुआ नहीं है

तुमको देखकर मैंने यह जान लिया है
तुमसे मेरा ताअल्लुक8 कोई नया नहीं है

क्यों हो इस बात से नाराज़गी किसी को
किसी से इश्क़ करना कोई ख़ता नहीं है

क्यों हैं यह फ़ासले, क्यों हैं यह दूरियाँ
क्या तू मुझको ख़ुदा की अता नहीं है

तुझे देखकर जो दीप जलाया था दिल में
तूफ़ानों के कारवाँ में भी वह बुझा नहीं है

लबों में दबा रखी हैं जो अब तक हसरतें
उनका क़ाफ़िला अभी तक गया नहीं है

फ़क़त तेरी यादों के जीने का सहारा क्या है
तेरे सिवा यह किसी से भी छुपा नहीं है

तुम्हें देखते ही गया दिल मैं क्या करता
तुम्हें पाने को मैंने क्या कुछ किया नहीं है

जब तुम नहीं पास में मेरे’ मैं क्या कहूँ
मेरे पास चीज़ और क्या-क्या नहीं है

रात ढलते-ढलते सहर में डूब गयी और
किरनों का अब तक कोई बसेरा नहीं है

शायद मानी मेरी ज़िन्दगी ने खो दिया है
कि मेरा अपना एक कोई तुम-सा नहीं है

गुपचुप बैठा है चाँद बादलों में कहीं
बहुत दूर से भी आती कोई सदा नहीं है

मैं भटकता हूँ देख तेरी राह की जानिब9
मुझे सुकूँ अब तस्वीरों से होता नहीं है

कभी बदले मेरा भी नसीबा और तू मिले
क्या मेरी क़िस्मत में कुछ ऐसा नहीं है

यह ज़िन्दगी की रात कब रौशन होगी
आज मेरी बाँहों में मेरी चन्द्रमा नहीं है

चाँद से चेहरों में भी वह नूर कहाँ है
मैंने देखे हैं हसीं कोई तेरे जैसा नहीं है

यह मोड़ उम्र का तेरे बिना तन्हा है
इक तेरे सिवा मैंने किसी को चुना नहीं है

हाले-दिल बयान तस्वीरों से करता हूँ
और कुछ करते मुझसे बना नहीं है

रह-रह के जो जलती-बुझती है जानम
वह उम्मीद पूरी तरह फ़ना नहीं है

मैं हूँ मुसाफ़िर तुम हो मेरी मंज़िल
मुझको रस्तों का कोई छोर पता नहीं है

कभी उदास कभी ख़ुश लगती हो मुझको
मुझे शामो-सहर10 का कुछ पता नहीं है

हूँ गर मैं मुकम्मिल11 सो तुमसे ही हूँ
वरना जहाँ में मेरा कोई अपना नहीं है

जागती आँखों से मैंने तेरे ही ख़ाब देखे हैं
और इस जीवन में कोई सपना नहीं है

मुझमें तख़लीक़12 मोहब्बत तुम से है
यह एहसास पहले कभी जगा नहीं है

जिस कशिश से खींचती हो तुम मुझको
जादूगरी में उस्ताद कोई तुमसा नहीं है

नाचीज़ का दिल धड़कता है आपके लिए
जौहराजबीं मैंने देखा कोई आपसा नहीं है

इस बेजान जिस्म को ज़रा-सी जान मिले
दिलो-धड़कन का कोई रिश्ता नहीं है

ताबीज़ तेरी यादों की दिल में पहने हूँ
हाल तेरे बीमार का बहुत अच्छा नहीं है

हलक़ में धँसे हुए हैं तेरे नाम के शीशे
मगर लहू मेरे लबों से टपकता नहीं है

ग़ुम हूँ आज तक उस हसीं शाम में कहीं
वह ढलता हुआ सूरज अभी डूबा नहीं है

क़त्ल जिन नज़रों ने किया था मुझको
किसी नज़र में वह हुनर वह अदा नहीं है

रोज़ तेरा निकलना गली में चाँद की तरह
दिल मेरा वह मंज़रे-हुस्न भूला नहीं है

ज़ख़्मों पर रखूँ किस मरहम का फ़ीहा
ग़ैरों में अपना दोस्त कोई लगता नहीं है

मैं कब जी सकता हूँ तेरे बिन सनम
मरने के सिवा पास कोई रास्ता नहीं है

हमें तिश्नगी13 में मिला ज़हराब14 सो पी गये
यूँ कभी ज़हर कोई चखता नहीं है

बह रहा था दरया लग के किनारे से
यूँ वह कभी बाढ़ के सिवा बहता नहीं है

न दिन में लगता है जी न रात में लगता है
मेरा ख़्याल इक वह भी रखता नहीं है

रहे-इश्क़15 का है वह मुसाफ़िर यारों
जो पैदल चलते हुए बरसों थकता नहीं है

हमने सुना है मिल जाती है मंज़िल उनको
जिनका हौसला कभी बुझता नहीं है

छाये हैं बदरा तो माहे-सावन16 ही होगा
वरना बादल यूँ कभी गरजता नहीं है

तुम्हीं से है इश्क़ मुझको’ जान लो
और यह दिल किसी से भी डरता नहीं है

नम हैं आज तक यादों के सूखे पत्ते
बीती गलियों में और कुछ उड़ता नहीं है

हम छोड़ आये हैं अपने आप को कहीं
पता मेरा मुझको भी मिलता नहीं है

जो किसी हर्फ़17 में तुम मिल जाती हो
जमता हुआ वक़्त फिर गलता नहीं है

सन्नाटों से बात करती हैं ख़ामोशियाँ
मीठा-सा दर्द आँखों में उतरता नहीं है

वह कौन-सी चीज़ है जिसे ढूँढ़ता-फिरता हूँ
मेरे सीने में साँस-सा कुछ बजता नहीं है

यह किधर चला आया हूँ ख़ुद नहीं जानता
यह दुनिया शायद मेरी दुनिया नहीं है

फ़क़त18 अपने से लड़ता हूँ ग़ैरों से कब
ख़ुद से मेरा झगड़ा कभी मिटता नहीं है

दमे-आख़िर19 जो मिले तो न कहेंगे तुमसे
अब किसी और ग़म का हौसला नहीं है

फूल खिलते हैं चमन में मेरे दिल के
मगर यह चमन अब महकता नहीं है

अर्ज़ किया जो इश्क़ तुम्हें तो क्या होगा
मेरे बारे में तुम्हें कुछ भी पता नहीं है

उठा था इक बादल का टुकड़ा पलकों तक
इक तेरे लिए वह भी बरसता नहीं है

दर्द का अब तो शाम-सा रिवाज़ हो गया
अब मीठे लबों से वह भी हँसता नहीं है

महसूस करो मेरा इश्क़ और लौट आओ
अब सफ़रे-ज़िन्दगी तन्हा कटता नहीं है

माज़ी की हवाओं में उड़ती है एक ख़ुशबू
क्यों उसे बाँधकर कोई रखता नहीं है

मैं दबा हूँ इस ज़मीं में अपने पैरों तले
अब इश्क़ पर मेरा ज़ोर चलता नहीं है

हमें कोई दोस्त उठाये इस लाशे पर से
जिस्म में साँस का कोई क़तरा नहीं है

फूलों से नाज़ुक ख़ुशबुओं का वह बदन
मेरे ख़ाब का महज़ एक टुकड़ा नहीं है

जो किया तुमने मुझपर वह जादू ही तो है
मेरे सीने में अब दिल धड़कता नहीं है

औराक़े-गुल20 पर मैंने जब शबनम21 देखी
क्यों मुझे याद और कोई रहता नहीं है

पीठ पीछे तुम चले गयी हाए वह वक़्त
क्यों वक़्त किसी के लिए रुकता नहीं है

मैं चला हूँ क़दम-क़दम तन्हा भीड़ में
आगे चलने वाला पीछे तकता नहीं है

ऊदे-ऊदे22 बादलों में चमकी है बिजुरिया
देखा उसे तो फिर कुछ दिखता नहीं है

तू लहरों पर चलती होगी शायद कभी
क्या तूने गीला मन मेरा छुआ नहीं है

कितनों से लाग23 रखा, दुनिया से वैराग है
तेरे सिवा क्योंकि कोई जचता नहीं है

मोहब्बत है क्या उसे खोना या पा लेना
हमें जीने मरने का फ़र्क़ पता नहीं है

जाना तेरा हुआ और सब कुछ लुट गया
दाग़े-हिज्र24 हाथ की लकीरों से छूटा नहीं है

सुनसान बीती गलियों में भटकते हैं हम
हमें अब कहीं कोई आवाज़ देता नहीं है

मेरे ख़ुदा इल्तजा मान ले इस ग़रीब की
ग़ैर हैं सब, मेरा कोई मसीहा नहीं है

काँच का बना हूँ या फिर मिट्टी से बना हूँ
जो भी हूँ क्यों मेरा दिल पुख्ता नहीं है

वह किन हालात में गया है मैं जानता हूँ
यह भी यक़ीन है कि वह बेवफ़ा नहीं है

मैं न कह पाया वह तो आया था मेरे घर
इस फ़ासले में उसकी कोई ख़ता नहीं है

बस ग़ैर हैं सब मुझसे ज़माने भर में
किसी ने मेरा मुझसे कुछ भी लिया नहीं है

दरकार25 है मुझको मेरे ख़ुदा से सिर्फ़ तू
मुझे जहानो-शय26 से कोई वफ़ा नहीं है

ख़यालों के पत्थरों में मैं मसला गया हूँ
किस-किस पल मेरा दिल दुखा नहीं है

ज़बाँ से कभी कुछ न कहा मैंने तुझसे
क्या तुमने भी कुछ आँखों में पढ़ा नहीं है

मैं भी ख़ुश नहीं हूँ’ तुम भी ख़ुश नहीं होगी
दर्दे-जुदाई27 मेरे मन से बुझा नहीं है

मुझे कोई राह दिखाये रहनुमा28 बनकर
इन अंधेरी गलियों में कोई दिया नहीं है

बहुत तड़पती है जिस्म की क़ैद में रूह
है उसको भी तेरा ग़म कि मुर्दा नहीं है

इन्तिहाँ29 भी होगी इम्तिहाँ30 मुझको
तुम नहीं गर’ ज़िन्दगी की इब्तिदा नहीं है

मैं जो तुमसे दूर यहाँ पर साँस लेता हूँ
यह मेरी मजबूरी है जानम, दग़ा31 नहीं है

है अंधेरी, काली, गहरी रात इन आँखों में
क्यों मेरे आलम में चाँदनी रिदा32 नहीं है

आऊँ तो किस तरह आऊँ तेरे पास मैं
वक़्त के पहले आने का फ़ायदा नहीं है

इन हवाओं से कहा है जायें तेरे घर तो
पैग़ाम दें मेरा कोई तेरे सिवा नहीं है

क्या पियूँ मैं तेरी आँखों से पीने के बाद
दुनिया की किसी शय में ऐसा नशा नहीं है

इश्क़ करिये तो फिर पछतायिए क्या
इश्क़ एक एहसास है कोई बला नहीं है

हर पल मैं तन्हाइयों से भागता रहा हूँ
मेरे दिल में तू है कोई ख़ला नहीं है

मेरी हद न पूछो जो मुझे तुमसे इश्क़ है
कोई यह कह दे ‘विनय’ बावफ़ा नहीं है!

बुझा मेरे दर्द इश्क़ की आग से आज
जला है इश्क़ में ‘नज़र’ कि बुझा नहीं है

पूछता है ज़माना ‘नज़र’ की शायरी को
किस दिन किताब में तुझको लिखा नहीं है

शब्दार्थ:
1. बहार का मौसम, season of spring; 2. अजनबी, stranger; 3. अंधेरा, darkness; 4. रास्ता दिखाने वाला, motivator; 5. बिछोह, separation; 6. मृत्यु, demise; 7. बादल, cloud; 8. सम्बंध, relation; 9. तरफ, by side; 10. शाम और सुबह, evening and morning; 11. पूर्ण, complete; 12. उद्भवित, creation; 13. प्यास, thirst; 14. विषैला जल, poisonous water; 15. प्रेम का मार्ग, path of love; 16. सावन का महीना, season of rain; 17. शब्द, word; 18. मात्र, only; 19. मृत्यु-क्षण, demise; 20. फूल की पंखुड़ियाँ, petals of flower; 21. ओस, dew; 22. गीले-गीले, wet; 23. ईष्या, enmity; 24. बिछड़ने का शाप, curse of separation; 25. आवश्यकता, need; 26. दुनिया और वस्तु, world and things; 27. बिछड़ जाने की पीड़ा, pain of separation; 28. मार्गदर्शक, guide; 29. जीवन का अंत, end of life; 30. परीक्षा, examination; 31. धोख़ा, cheat; 32. चादर, bedspread


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरी ग़ज़ल

जो इश्क़ की आग भड़क उठी है

जो इश्क़ की आग भड़क उठी है
जैसे मैं शोलों में जल रहा हूँ

तेरे बदन की कशिश का है जादू
देखकर तुझ को मचल रहा हूँ

मुझे है ख़ाहिशो-तमन्ना1 तेरी
मैं उम्मीद को मसल रहा हूँ

एक यह ख़ाब मैं देखता हूँ कि
तेरी मरमरीं बाँहों में पिघल रहा हूँ

शब्दार्थ:
1. ख़ाहिशो-तमन्ना: इच्छा और चाह


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरी ग़ज़ल

वह जब भी इस गली इस डगर आये

वह जब भी इस गली इस डगर आये
मेरी ज़िन्दगी की सहर1 बनकर आये

शबो-रोज़2 जलता हूँ मैं इन अंधेरों में
वह मेरे लिए कुछ रोशनी लेकर आये

आया था पिछली बार अजनबी बनकर
अब कि बार वह मेरा बनकर आये

हूँ बहुत दिनों से शाम की तरह तन्हा
कोई मंज़र-ए-सोहबत3 नज़र आये

दरवाज़े पे खड़ा हूँ इक यही आस लिये
वह मेरी बे-सदा4 आह सुनकर आये

मंदिर-मस्जिद जाकर सर नवाया5
अब तो मेरी दुआ में कुछ असर आये

खिले हैं गुलशन में हर-सू6 गुल-ही-गुल
वह आये तो मेरा चेहरा निखर आये

मुद्दत से देखी नहीं शुआहा-ए-फ़ज़िर7
आँखें खोलूँ गुलाबी मखमली सहर आये

शफ़क़-ओ-उफक़8 के रंग कैसे देखूँ
मेरी आँखों में कोई पुराना मन्ज़र आये

मैं तंग गलियों में तन्हा-सा फिरता हूँ
क्यों मेरे ख़ुदा को रहम मुझ पर आये

या दिल यह धड़कना बंद कर दे मेरा
या इस दिल पर मुझ को ज़बर9 आये

तुझे भेजूँ किस पते पर पयाम10 अपना
कि मुझ तक मेरी कुछ ख़बर आये

मैंने नहीं बदला अपना घर आज तक
उम्मीद कि वह शायद कभी घर आये

मिलें उसको हर तरह से ख़ुशियाँ हमेशा
और उस की हर बला मेरे सर आये

है बहुत प्यासी यह ज़मीन-ए-दिल11
कभी मुझ पर भी बारिश टूटकर आये

ऐ ‘नज़र’ उस को कुछ न कहे दुनिया
हो यह कि हर इल्ज़ाम मुझ पर आये

शब्दार्थ:
1. सुबह; 2. रात और दिन; 3. दोस्ती का मंज़र; 4. मौन; 5. सर झुकाया; 6. सभी ओर; 7. भोर की (लालिमा युक्त) किरणें; 8. सुबह और शाम (के आकाश का गुलाबी रंग); 9. नियंत्रण; 10. संदेश; 11. दिल रूपी पृथ्वी


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

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मेरी ग़ज़ल

वह मुझको मुआफ़ रखे दुनिया के मामलों से

वह मुझको मुआफ़1 रखे दुनिया के मामलों से
मैं अब कभी किसी और से इश्क़ न करूँगा

दिल मेरा चाहे हो जाये टूटकर टुकड़े-टुकड़े
इस ग़म में आँखों को तर ऐ अश्क! न करूँगा

जो देखा है उस का चेहरा मैंने दो ही रोज़
इस बात का अपने ख़ुदा से रश्क2 न करूँगा

मेरे दिल में है तेरे ख़ाबों का इक भँवर-सा
जो हुआ यह दरया सो उसे खुश्क3 न करूँगा

दिल की दहलीज़ के भीतर रहेंगे मेरे ख़ाब
ख़ाबों को ज़ाहिर कभी मानिन्दे-मुश्क4 करूँगा

शब्दार्थ:
1. माफ़, forgive; 2. रश्क़ या रश्क, ईर्ष्या, envy; 3. सूखा, dry; 4. महक की तरह, like the smell


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४