है जो किसी से तुम्हें तो गुल से निस्बत है
तुम मुझको मिले हो यह मेरी क़िस्मत है
तेरे तब्बसुम से ही है यह रंगे-बहार
लगता है अब जैसे सारी फ़िज़ा जन्नत है
तेरी आँखों की गुलाबी डोरियाँ जैसे नश्शा-ए-मै
तिश्ना-लब हूँ मुझे पीने की हसरत है
तेरी ज़ुल्फ़ों से गुज़रते देखी है मैंने सबा
हाए! यह सबा भी कितनी खु़श-क़िस्मत है
तेरे अबरू मानिन्दे-कमान उठते हैं
मुझको तेरे आगोश में मरने की चाहत है
तेरे लब हैं की पंखुड़ियाँ गुलाब की हैं
इक बोसा पाने को शबो-रोज़ की मिन्नत है
सुना है जन्नत की हूरों के बारे में बहुत
मगर उनमें कहाँ यह कशिशे-क़ामत है
देखा है तुमने कभी चाँद को सरे-शाम
एक वही है जो तेरी तरह खू़बसूरत है
हो तुम ही मानिन्दे-खु़दा मेरे लिए
इस दिल में तेरे लिए सच्ची अक़ीदत है
तुम क़रीब होते हो दर्द मिट जाते हैं
तुमसे ही मुझको होती नसीब फ़रहत है
तुम्हें देखा तो मैंने अपनी ज़िन्दगी देखी
तुमको चाहना ही खु़दा की इबादत है
मेरा दिल जितना चाहता है तुमको सनम
तुम्हें भी मुझसे उतनी ही मोहब्बत है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २६/०७/२००४