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मेरी त्रिवेणी

तुम जिस तरह से देखती हो मुझे

तुम जिस तरह से देखती हो मुस्कुराकर मुझे
मेरी रूह भी पाकीज़गी का एहसास करती है,

चलो यह बदशक़्ल आख़िरश पाकीज़ा तो हुआ!


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरी त्रिवेणी

तेरे रेशमी बदन से

तेरे रेशमी बदन से सरकता है यह दुप्पटा
हज़ारों आहें लहू में डूबकर आग बन जाती हैं

ज़ालिम तेरे तआक़ुब की यह अदा भी ख़ूब है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरी त्रिवेणी

तआक़ुब

बड़ी उम्मीद से मैं चला था तआक़ुब-ए-इश्क़ पर
और दीदार उसका मुझको ही घायल कर गया है

अब सुबह का चाँद और शाम का सूरज दोनों यहीं!


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

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मेरी त्रिवेणी

मेरी हर नज़र

मेरी हर नज़र बेक़रार’ और रूह बेताब है,
लबों को भी न तस्लीम एक बूँद आब है

रोज़-रोज़ की मुश्किली, यही वह अज़ाब है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४ 

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मेरी त्रिवेणी

न कोई शिकायत है

न कोई शिकायत है तुझसे न कोई गिला है
तुम अपने हसीं लबों से हर्फ़ छुओ न छुओ

कम-स-कम बाहम निगाहों में गुफ़्त-गू है!

बाहम= आपस में


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४