शबनम यूँ सुलगी रात सोते पत्तों पर
जैसे वह मुझको मिले और मिले भी ना
चाँद खिड़की पर बैठकर मुझे देखता है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
Merii triveNii
शबनम यूँ सुलगी रात सोते पत्तों पर
जैसे वह मुझको मिले और मिले भी ना
चाँद खिड़की पर बैठकर मुझे देखता है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
दर्द सुलगते क्यों हैं जलते क्यों नहीं
मेरी आँखों में अब्र हैं बरसते क्यों नहीं
यह तुमको देखकर ही शायद बरसेंगे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
क्यों लोग यहाँ जमा हैं?
क्यों वह उदास बैठा है?
कुछ तो बोलो! मेरी साँसें उखड़ रही हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
उफ़! यह छाँव की उमस
तौबा यह झूठे फ़साने
उम्मीद की धूप रिस गयी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मैं जब दुआ करूँ
तुम आमीन कहो
और दुआ क़ुबूल हो जाये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३