तरक़ीब कोई पहाड़ उठाने की
क्यों इसे सिर पे उठा रखा है
किसके सर ये आफ़त पटकोगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
Merii triveNii
तरक़ीब कोई पहाड़ उठाने की
क्यों इसे सिर पे उठा रखा है
किसके सर ये आफ़त पटकोगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
अंगीठी में सुलगता कोयला झलोगे
तब जाकर धुँआ ज़रा कम उठेगा
आँसू अपनी आँख के सब पोंछ दो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
वो वक़्त कि वक़्त हमें सिर पे लिए फिरता था
अब है कि मेरे दरवाज़े से गुज़रते हुए डरता है
कारू के ख़ज़ाने में कितने सिक्के हैं, गिनना ज़रा!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
हमने तो कभी दिल की अंधी ख़ला में
किसी चाँद को रोशन होते नहीं देखा
शायद आतिशी इंतकाल था सितारे का
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मैं तेरे इश्क़ की छाँव में जल-जलकर
कितना काला पड़ गया हूँ, आकर देख
तू मुझे हुस्न की धूप का एक टुकड़ा दे!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३