कुछ रिश्ते होते हैं बच्चों की होम-वर्क डायरी की तरह
हमने ग़म को पहना है दिल पर किसी ज़ेवर की तरह
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
Rubaa’ieyaan
कुछ रिश्ते होते हैं बच्चों की होम-वर्क डायरी की तरह
हमने ग़म को पहना है दिल पर किसी ज़ेवर की तरह
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
उस्लूब*, उस्लूब, उस्लूब
क्या पढ़ने वाले इनको समझते हैं
वज़नी हो सीने पर गर ज़ख़्म
उसे पढ़ने वाले दर्द को समझते हैं
* लेखन के नियम अथवा शैली
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
बहुत पुराना है वह रिश्ता
जिसे गठरी में बाँधकर रखा है
मेहमान को बिठाया बाहर
घर को किराये पर दे रखा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
हम सब के सच्चे दोस्त हैं
हर दिल की बात समझते हैं
उसकी ख़ुशी को हम अपने
ख़ुशी के आँसुओं में रखते हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
धीरे-धीरे ग़म सहना,
किसी से कुछ न कहना
फ़ितरत ऐसी हो गयी,
दिन-रात मरके जीना
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३