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मेरा गीत

चोरी-चोरी तुम मुझको देखती

कभी कहीं हम-तुम मिलते, जब मिलते
लड़ते-झगड़ते, बिगड़ते-बड़बड़ाते
रूठते-मनाते और फिर चिढ़ते-चिढ़ाते
कभी कहीं हम-तुम, कभी कहीं हम-तुम

नहीं तुम, नहीं तुम! तुम्हें कुछ नहीं आता
इस बात पर तुम लड़ती, मैं झगड़ता
काश! ऐसा भी तेरे-मेरे साथ हो जाता
कभी कहीं कभी कहीं, कभी कहीं हम-तुम

पीछे-पीछे मैं तुम्हारे आता, तुम पलटती
मैं तुमको फूल देता और मुस्कुराता
तुम रूठती, मुँह बनाती, मैं मनाता
कभी कहीं कभी कहीं, कभी कहीं हम-तुम

छोटी-छोटी बातों पर बार-बार चिढ़ जाती
चिढ़कर मुझको चिढ़ाती, मुँह फुलाती
आँखें दिखाती, रूठी हो मुझको जताती
कभी कहीं कभी कहीं, कभी कहीं हम-तुम

कभी-कभी चोरी-चोरी तुम मुझको देखती
मैं कहता ‘क्या है’, तुम कहती ‘कुछ नहीं’
हम आँखों में एक-दूसरे का दिल पढ़ते
कभी कहीं कभी कहीं, कभी कहीं हम-तुम


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

6 replies on “चोरी-चोरी तुम मुझको देखती”

कभी-कभी चोरी-चोरी तुम मुझको देखती
मैं कहता ‘क्या है’, तुम कहती ‘कुछ नहीं’
हम आँखों में एक-दूसरे का दिल पढ़ते
कभी कहीं कभी कहीं, कभी कहीं हम-तुम

“chori chori…..”

regards

एक मीठी सी शरारत लिए हुए है ये कविता…

http://jhankar.wordpress.com

शोभा, सीमा और अम्बुज जी आप सभी पाठकों का सहर्ष स्वागत है!

नहीं तुम, नहीं तुम! तुम्हें कुछ नहीं आता
इस बात पर तुम लड़ती, मैं झगड़ता
काश! ऐसा भी तेरे-मेरे साथ हो जाता

लाजवाब लिखा है, दिल के आस-पास बिखरी यादें हैं आप की नज़्म

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