एक मुद्दत से ज़ख़्मों को छुपाये बैठे हैं
हिज्र का दर्द दिल में दबाये बैठे हैं
क्या तदबीर तुमसे वस्ल को बनाऊँ मैं
दिल जानो-जिगर तुम पर लुटाये बैठे हैं
दिल से शिक़ायत हमें बहुत है मगर
क्या करें उसका तुमसे लगाये बैठे हैं
किसी राह किसी मोड़ पर तुम मिलोगे
हर रहगुज़र में नज़रें बिछाये बैठे हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’