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मेरी ग़ज़ल

दर्द की तहरीरें

मैं जो तुम्हें देखता हूँ मुझको देखती हैं तेरी तस्वीरें
साँस लेता हूँ मगर कमनसीब हैं हाथों की लक़ीरें

न ही कोई रब्त न ही रिश्ता न मरासिम न बंधन
फिर मेरे मन में पड़ रही हैं किसकी तसलीम की ज़ंजीरें

पाँव मोड़ दर मोड़ चलके इस मोड़ तक आये थे
शायद इसीलिए नाकाम हैं खा़हिशों की सारी तदबीरें

जबींसाई से कब मिटा है माथे का लिखा हमनफ़सों
ये दिल शबो-रोज़ खु़द लिखता है दर्द की तहरीरें

नसीब है फ़ासला, हिज्र या फ़ुरक़त’ कुछ भी कह लो
वरना जुड़ जाती दो अजनबी आश्ना दिलों की तक़दीरें

‘नज़र’ शब कहीं न समा जाये दर्द की गहराई में
मैं जो उसे देखता हूँ मुझको देखती हैं उसकी तस्वीरें


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १२/११/२००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

2 replies on “दर्द की तहरीरें”

पाँव मोड़ दर मोड़ चलके इस मोड़ तक आये थे
शायद इसीलिए नाकाम हैं खा़हिशों की सारी तदबीरें

बढ़िया लेखन..

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