दर्द किसी सहर में बुझता तो आसान होती ज़िन्दगी
ज़िन्दगी जो तेरा साथ होता तो पहचान होती ज़िन्दगी
मंज़िल न उठ के आयी है न आयेगी किसी दौर
यह एहसास गर न होता मुझे तो नादान होती ज़िन्दगी
तेरे ग़मों ने मेरा बहुत साथ दिया है उम्रभर
जो मेरे पास यह दवा न होती तो हैवान होती ज़िन्दगी
तुम रहते हो मेरे दिल में नज़र में बहार रहती है
क्या होता वगरना एक टूटा हुआ मकान होती ज़िन्दगी
तुमने मेरी धड़कनों को बताया क्या होती है रवानगी
इस एहसास के बिना बेजान-सा सामान होती ज़िन्दगी
अच्छा किया यह आईना तुमने खु़द ही तोड़ दिया
वरना उम्रभर बेकार ही परेशान होती ज़िन्दगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’