देखे जिसे कोई हसरतों से ऐसा तो नहीं हूँ मैं
अक़ीदत करें जिसकी वह ख़ुदा तो नहीं हूँ मैं
माना यकता हूँ मेरे जैसा कोई दूसरा नहीं
फिर भी हर मायने में पहला तो नहीं हूँ मैं
जी रहा हूँ अब तक बिन तेरे तन्हा-तन्हा
जो असरकार हो जाये वह सदा तो नहीं हूँ मैं
क्यों न थके मेरी ज़बाँ कहते-कहते सबको अच्छा
कोई बातिल कोई पारसा तो नहीं हूँ मैं
न लड़ मुझसे मेरे रक़ीब इल्तिजा है तुझसे
जो आते-आते रह जाये वह क़ज़ा तो नहीं हूँ मैं
यक़ीनन वह बेहद ख़ूबसूरत है ‘नज़र’
वह न मिले मुझे इतना भी बुरा तो नहीं हूँ मैं
अक़ीदत:Adore, Affection | यकता: Matchless, Incomparable
बातिल: Void, झूठा । पारसा: महात्मा, Saint | रक़ीब:enemy | क़ज़ा:Death
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
4 replies on “देखे जिसे कोई हसरतों से ऐसा तो नहीं हूँ मैं”
क्यों न थके मेरी ज़बाँ कहते-कहते सबको अच्छा
कोई बातिल कोई पारसा तो नहीं हूँ मैं
behtarin bahut hi alag sa sher bahut khub
यक़ीनन वह बेहद ख़ूबसूरत है ‘नज़र’
वह न मिले मुझे इतना भी बुरा तो नहीं हूँ मैं
” wah wah wah, kya dard-e-dil ka izhaar kiya hai, subhanallah”
regards
महक जी और सीमा जी आपका हार्दिक अभिनन्दन।
देखे जिसे कोई हसरतों से ऐसा तो नहीं हूँ मैं
अक़ीदत करें जिसकी वह ख़ुदा तो नहीं हूँ मैं
kya likh diya vinay ji aapne … bahot khub shandar … dhero badhai iske liye
arsh