धीरे-धीरे उतरती है साँस सीने में
यह दर्द बड़ा बेदर्द है सीने में
लुत्फ़ जीने क सब ख़त्म हो गया
डूबती दिखती है हर आस सीने में
उसने सवाल यूँ रखे मेरे सामने
जवाब आबला-पा रह गये सीने में
एक कशिश जो उसकी आँखों में थी
वबा बनके रहती है आज सीने में
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३