दिल है गुमसुम, प्यार में तेरे, साथी मेरे’
(तुम कहाँ हो)
तुम थे’ तुम हो’ जान मेरी, मेरी ज़िन्दगी’
(तुम कहाँ हो)
हुए तुम मुझ से जुदा, रहने लगा ख़ुद से ख़फ़ा
जहाँ भी है’ वापस लौट आ’ मैं हूँ तुझसे बावफ़ा
रूठे हुए दिन’ उदास रातें, अब मनती नहीं
(तुम कहाँ हो)
तेरी यादों की फाँस है, ज़ख़्मी हर एक साँस है
सूखी-सूखी है ज़मीं’ हर सू बरखा की प्यास है
ऊदी-ऊदी आँखों को’ आज भी इक तिश्नगी है
(तुम कहाँ हो)
राहों पे फूल बिछाती हैं ये बहारें, नज़रों को मैं
आये तू आये कभी’ करूँ पूरा’ तेरे सपनों को मैं
टूटे हुए दिल के टुकड़ों में देखूँ’ मैं सूरत तेरी
(तुम कहाँ हो)
सूरज की किरन चूमती है जब’ खिलती है कली
ज़ुबाँ पे क़तरा-क़तरा’ गलती है’ ग़म की डली
ख़ुशी परायी, हर ग़म’ अब अपना लगता है
(तुम कहाँ हो)
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
4 replies on “दिल है गुमसुम, प्यार में तेरे”
अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए है।बहुत बढिया।
विनय भाई बहोत ही संगीत मय लिखा है आपने सोंचता हूँ इसे स्वरबद्ध करा जाए… बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई साहब….
शुक्रिया, परमजीत और अर्श, अर्श साहब स्वरबद्ध करें ज़रूर करें पर संगीतकार कौन है!
Aap ki rachayen sachmuch mere dil ke bhaav meri zabaan pe le aate hain…
Aaj bahut din bad ek ghazal aayi hai,
Mere askhon pe khuda ne rehmat dikhayee hai
Yun to lafz mushq-a-mohabbat ki amanat the Sameer
Aaj lafzon ne nashaad dilon ki kasam khaayi hai
Tum ne jo dard diya maine wafa ke naam se liya
Har kadam pe tera naam mere naam se liya
Aaj us naam ko main khud mitana chahti hoon
Aisi veeran zindagi ko bahut umr jee liya
Tujhe bhoolne ki duwaa maangti hoon
Kaisi diwaani hoon, khud apni khizan mangti hoon
Bahut bereham hai tu, iss dil kaise samjhaaon yeh
Bevajha tum se judai ka sila mangti hoon