दिल का दर्द गर दरया हो जाएगा
मोहब्बत के सब निशाँ डुबो जाएगा
उड़ जायेंगे जब सारे पंछी डाल से
समझ लीजे अब सवेरा हो जाएगा
जबकि हो ज़ुल्फ़ परीशाँ रात-दिन
कैसे तेरा आशिक़ खु़ल्द में सो जाएगा
उसको भी न होगी खु़दा से ये उम्मीद
फ़रिश्ता भी मेरे हाल पर रो जाएगा
मैं नहीं दाग़े – गर्दे – रह इनको
कोई कैसे उसके दिल से धो जाएगा
मैं वली तो नहीं कोई किस सवाब के लिए
टूटी तस्बीह के दाने पिरो जाएगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
2 replies on “दिल का दर्द गर दरया हो जाएगा”
nice dear….]
thanks adesh ji