दिल की बस्तियाँ जलीं पर उठा नहीं धुँआ
बुझाया आँखों से मैंने पर बुझा नहीं धुँआ
बहुत देर तक टीस दबाये बैठा रहा मैं
चंद अश्क जो आये फिर चुभा नहीं धुँआ
दर्द पर्त-दर-पर्त जमता ही रहा
बुझाया बहुत मैंने पर हुआ नहीं धुँआ
कुछ उम्मीदें अश्कों के साथ बह गयीं
अश्क जो आँखों में आये फिर रहा नहीं धुँआ
पलकें बंद करता था पर होती न थीं
बहुत बाँधा किनारों से पर बँधा नहीं धुँआ
हम क्या-क्या कहें ‘नज़र’ तुम ही कह दो
मैंने आँखों में छुपाया पर छुपा नहीं धुँआ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १७ अगस्त २००४