ता-दमे-आख़िर लबों पे तेरा नाम आये
तू मिलने आये अगर दिल को आराम आये
रोशनी होगी अगर तुम-सा चाँद आये
तेरे रू-ब-रू लबों पे दिल का कलाम आये
हरगिज़ न होगा किसी को देख आह भरूँ
कभी तो आपके हुज़ूर में मेरा सलाम आये
दिल में दर्द हो थोड़ा और… थोड़ा और…
किसी तरह तो ग़म आपका मेरे काम आये
किसी रोज़ मैं हूँ, आप हों, शाम हो, चाँद हो
मेरी ज़िन्दगी में इक ऐसा मक़ाम आये
तेरे दीदार में काटी थीं मैंने कई शामें
लौटकर उनमें से वापिस कोई शाम आये
हम मिलें कभी कली और भँवरे की तरह
मेरे लबों पे तेरे नाज़ुक़ लबों का जाम आये
वो सुब्ह-से चेहरे पे सूरज-सी बिंदिया
देखता था जब वह फ़जिर वह शाम आये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’