Categories
मेरी नज़्म

दिल में रखा था जिसको हमने

दिल में रखा था जिसको हमने
अपना समझकर
क्या पता था कि
किरायेदार की तरह रहेगा वह

अपनी कश्ती जब मिल गयी
तो चल दिए दूर हमसे
अपना सामान बाँधकर
यह भी न सोचा कि
कैसे रहेंगे हम वीराने में

तन्हा रहकर जी लेते ज़िन्दगी को
गर हमसे न मिलते
पिछले मोड़ पर वह
जाने कैसे सिलेंगे
उसने जो दिए ज़ख़्म हमको

दिल में रखा था जिसको हमने
अपना समझकर
क्या पता था कि
किरायेदार की तरह रहेगा वह

ले जा रहे थे जब
ले जाते अपना सब कुछ
क्या ज़रूरत थी
ये यादें पीछे छोड़कर जाने की

क्या सभी होते हैं इस तरह
ऐसे बेवफ़ा ऐसे बेपरवाह
गर ऐसा है तो
नहीं चाहिए दोस्ती किसी से
रह लेंगे तन्हाइयों के साथ तन्हा

दिल में रखा था जिसको हमने
अपना समझकर
क्या पता था कि
किरायेदार की तरह रहेगा वह

आयेगा, कुछ पल ठहरेगा…
और चल देगा हमें इस तरह छोड़कर

शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *