दिल से मेरे जो पहली नज़्म निकली थी
वह तेरे लिए थी सखी वह तेरे लिए थी
तेरे मेरे ख़ाबों की ज़मीं पर सखी
जब इश्क़ की ख़ुशबुएँ उड़ी थीं
उससे पहले लगता था ऐसे
आँखों में पानी की बूँदें जड़ी थीं
काँच की थीं वह सब आहें
जो उस पल दिल में टूटी थीं
फूलों से भी ज़्यादा नरम थीं
जो डोरियाँ, इस दिल में टूटी थीं
दिल से मेरे जो पहली नज़्म निकली थी
वह तेरे लिए थी सखी वह तेरे लिए थी
पहली-पहली बार मेरी आँखों में
तेरी तस्वीर जिस दिन बनी थी
उस दिन यहाँ तपती बर्फ़ पर
तेरी राह की सर्द रेत पिघली थी
सूख चुकी थीं वह सारी कलियाँ
जो इस दिल में खिली थीं
बिल्कुल अन्जान थीं वह दोनों राहें
जो एक-दूसरे से कभी मिली थीं
दिल से मेरे जो पहली नज़्म निकली थी
वह तेरे लिए थी सखी वह तेरे लिए थी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
One reply on “दिल से मेरे जो पहली नज़्म निकली थी”
tapati barf par,teri raah ki sard ret pighali,beautiful line.