एक अजीब-सी कशिश है तुझमें
एक अजब-सा नशा है
कई बार बहाने से
तुझे बहुत क़रीब से देखा है
कभी फूलों को खिलते हुए
कभी तितलियों को मचलते हुए
और तुझे वजहसार होके
हँसते हुए देखा है
एक अजीब-सी कशिश है तुझमें
एक अजब-सा नशा है
तेरी हँसी किसी अरुसि से कम नहीं
तेरी आँखों का नशेमन
किसी ख़ुशी से कम नहीं
जब देखा है, तुझे देखा है
एक अजीब-सी कशिश है तुझमें
एक अजब-सा नशा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
One reply on “एक अजीब-सी कशिश है तुझमें”
bahut khub
ek ajeb si kashish hai tujh mein ek ajeeb sa nasha hai
gantantra din ki badhai.