एक ख़ामोश अफ़साना जो तुम्हारी नज़रों ने सुनाया है मुझे
काश! वह तुम अपने लबों से मेरे लबों पर लिखती कभी,
इससे तेरी ज़िन्दगी के कुछ पल मेरे हिस्से तो आ जाते!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
एक ख़ामोश अफ़साना जो तुम्हारी नज़रों ने सुनाया है मुझे
काश! वह तुम अपने लबों से मेरे लबों पर लिखती कभी,
इससे तेरी ज़िन्दगी के कुछ पल मेरे हिस्से तो आ जाते!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
3 replies on “एक ख़ामोश अफ़साना”
umda triveni mari hai bhai vinay aapne.. gazab ki gahari thinking … ye andaza to koi aap se sikhe.. dhero badhai saab…
bahut khub
अर्श और मकरंद जी शुक्रिया!