एक लड़की मुझको सारा दिन परेशाँ किये घूमती है
ख़ाबों में भी आयी ख़्यालों को हैराँ किये रहती है
उसकी बातों में जाने कैसी ख़ुशबू है नाज़ुक मिज़ाज की
अदाए-हरकत है कभी गुल तो कभी मिराज़ की
यूँ तो इस जा में मेरी शख़्सियत है खाकसार-सी
लफ़्ज़ यूँ बुनती है’ जैसे हूँ तबीयत ख़ाबे-ख़ुमार की
चाहती क्या है, बात क्या है, मैं पता करूँ तो कैसे?
दर्दो-ग़म की बात छोड़, दिल का भेद तो कह दे!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
4 replies on “एक लड़की”
thoda itminaan keh deig 🙂 😉 ,bahut hi khubsurat kavita,ehsaas,shabd,bhav awesome
thanks, Mehek!
prajapati sahab…..aaj yuhi chanchal ka hindi rupantarad chahiye tha so……google me type kiya…..itefaak se aapke darr pe kadam rakh diya……yoon to koi rishta nahi apka hamara……par comment kiye bina jaya na gaya…….
acha likhte hai aap……jari rakhe…..ab to aana jana laga rahega……khuda hafij
ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया, पियूष जी!