एक नज़र लौटकर आयी आइने में
जब टुकड़े हुआ दिल ही आइने में
हम बरसों से यूँ ही ग़ुम थे आप में
आप आये न लौटकर कभी आइने में
इन्तिज़ार को नापता रहा दाइम ही
न अक्स आया कोई भी आइने में
एक कश्मकश रही ज़िन्दगी हमको
एक तस्वीर कभी न लौटी आइने में
हम कच्ची स्याही से लिखे हर्फ़ थे
हम रह न पाये कभी आइने में
ज़िन्दगी ऐसे जिए जिस तरह अयाज़*
नज़र ख़ुद से न मिलायी आइने में
हम रहते थे पर खो गये आइने में
राह क्यों राह भटक गयी आइने में
रोज़ शाम ही आया करती है शाम
वह न आया लौटकर कभी आइने में
वह शायद पीठ करके खड़ा होगा
हम ही न देख पाये हों कभी आइने में
हमें ग़ुरूर था उसके हुस्न पर
हरचन्द न पाया उसे कभी आइने में
क्या फ़र्क़ है जीने और मरने का
जब बाल अटक गया कोई आइने में
कल परसों की बात है कुछ लगा ऐसे
तस्वीर उसकी नज़र आयी आइने में
*सूरज
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३