गर तुम मेरे हमसफ़र होते
हसीन यह सभी मंज़र होते
खु़शबुओं का इक गुलिस्ताँ होता
ठण्डी छाँव वाले शज़र होते
तुम्हारी आँखों में हम डूब जाते
दीन-दुनिया से बेख़बर होते
बाज़ि-ए-जाँ आज भी लगा सकते हैं
लेकिन तब न यह डर होते
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
गर तुम मेरे हमसफ़र होते
हसीन यह सभी मंज़र होते
खु़शबुओं का इक गुलिस्ताँ होता
ठण्डी छाँव वाले शज़र होते
तुम्हारी आँखों में हम डूब जाते
दीन-दुनिया से बेख़बर होते
बाज़ि-ए-जाँ आज भी लगा सकते हैं
लेकिन तब न यह डर होते
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
One reply on “गर तुम मेरे हमसफ़र होते”
kya kavita hai