गोरी, आज यह सिंगार किसके लिए है
गुलाबी अंगों में निखार किसके लिए है
क्या सजन जी से मिलने का कोई वादा है
कहो ना हमसे आज क्या इरादा है…!
लटों की’ यह शरारत किसके लिए है
दिन-रात इतनी चाहत किसके लिए है
आज रात बलम जी को दीवाना कर दोगी
तीरे-नज़र का निशाना कर दोगी…
पूनम है आज की शब’ तेरे रंग से
खिल-खिल जाओगी पिया जी के संग से
मीठी-मीठी आज उनसे बतियाँ बनाओगी
उलझी-उलझी बाँहों में’ रतियाँ बिताओगी
गोरी का आज यह सिंगार पिया के लिए है
गुलाबी अंगों में निखार पिया के लिए है
हाँ-हाँ सजन जी से मिलने का कोई वादा है
कहो ना हमसे आज क्या इरादा है…!
जाओ-जाओ री सखियों ना सताओ मुझको
लाज आये री मुझे कुछ ना बताऊँ तुमको
पिया जी से किया इक वादा निभाना है
जाओ री सखियों, क्या कुछ और बताना है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
7 replies on “गोरी, आज यह सिंगार किसके लिए है”
bahot khub sahab bahot badhiya likha hai aapne … bahot hi masumiyat liye huye hai… dhero badhai aapko…
arsh
behtarin awesome,lajja ke shirngaar saji khubsurat kavita bahut badhai
सुन्दर रचना, बधाई.
This is so beautiful…..!
I am speechless…
अहा ! आज रसों मे ये श्रंगार किसलिए है. बहुत ख़ूब नज़र भाई बहुत ख़ूब.
सोचा कि एक स्त्री की मनोभावना और लज्जा को शब्द दे दूँ, बस इसलिए!
vinay ji bahut khub istri ke manobhaao ko present kiya hai aapny, well done.