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उफ़ वो नज़ाकत उनके नाज़ुक लबों की
कसमसाके नींद उड़ गयी मेरी शबों की
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और बीमारिए-इश्क़ में क्या होना था
दिल को दिमाग़ से जुदा होना था
मैं मोमिन हूँ गुनाहगार नहीं
क्यों ग़ालिब सितम उसका होना था
दिखा दिया है चाक सीना सनम को
असर अब नमक का होना था
वहशत है मेरे सनम को मुझसे
यूँ भी हश्र मेरे इश्क़ का होना था
बख़्त-बद् ने मुझे कहीं का ना छोड़ा
अब तन से जी को जुदा होना था
क्योंकर न मसले वो मेरे दिल को
गुलशने-ग़ैर वज़ा होना था
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४