गुज़रे जो मौसम हैं वह भी आयेंगे
तेरे नाम हमने जिन पर लिखे थे
वह पत्ते जब हमें वापस मिल जायेंगे
नया सफ़र है और दिल में सिफ़र है
वह नाम याद है वह शाम याद है
दिल भर जायेंगे जब हम मिल जायेंगे
जाने कब होगा ऐसा बिल्कुल पहले जैसा
अब जाने कब हम तुमसे मिल पायेंगे
एक दिन तेरे निशाँ भी हम पायेंगे
गुज़रे जो मौसम हैं वह भी आयेंगे
तेरे नाम हमने जिन पर लिखे थे
वह पत्ते जब हमें वापस मिल जायेंगे
कल जो था वही मन्ज़र आज भी है
लबों पर तेरा नाम आज भी है
किसे पता क्या कल हम हो जायेंगे
बरखा आती है गुलशन महक जाते हैं
सूखे पेड़ों को पत्ते मिल जाते हैं
ऐसी बरखा जाने कब कहाँ हम पायेंगे
गुज़रे जो मौसम हैं वह भी आयेंगे
तेरे नाम हमने जिन पर लिखे थे
वह पत्ते जब हमें वापस मिल जायेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९