हद है दर्द की वो दिल बहलने नहीं देते
काबे भी जाता कुफ्र के डर चलने नहीं देते
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे
कंधा भी कहारों को बदलने नहीं देते*
उड़ जाये अगर हवा के दोश को परदा
वह अपनी निगाहों को मचलने नहीं देते
दामन को उँगलियों में समेटकर वह
रत्ती भर भी उसको फिसलने नहीं देते
मेरी जान को हरदम पे है आरज़ू उनकी
और वो मेरे दम को निकलने नहीं देते
*ग़ालिब का शे’र है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३