हल्के गुलाबी बादल
उड़ रहे हैं
चाँद के आगे
इक तेरा नाम
लिख रहा हूँ
उम्र से आगे
ज़िन्दगी
जो दौड़ती है
नस-नस में
लहू बनके
उस लहू के
क़तरे-क़तरे में
तेरी मुहब्बत घुली है
तेरी इक
झलक से ही
मुझे ये
मंज़िल मिली है
एहसास तेरा
हुआ जो
ये मोहब्बत
मिली है
मुझे बदनामी की
ये हसीं
दौलत मिली है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००