Categories
मेरी ग़ज़ल

हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा

हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा
तुझे ढूँढ़ने वाली यह नज़र तन्हा

यूँ तो तेरी तस्वीर है दिल में मगर
फिर भी यह दीवारो-दर तन्हा

घर में हम हैं और आईना भी है
बिन तेरे हम दोनों यह घर तन्हा

तुम्हें देखा आज फिर रू-ब-रू, सामने
तुम्हें न दिखा हूँ इस क़दर तन्हा

बिन तुम्हारे इस तरह तन्हा हूँ
जैसे बिन फूलों के कोई शज़र तन्हा

बिन तुम्हारे कहीं दिल लगता नहीं
तुम बिन मैं जाऊँ किधर तन्हा

तुम नहीं तो यूँ लगता है मुझको
मैं हूँ आज भी शहर-ब-शहर तन्हा

जलेंगे सारी-सारी रात आज फिर हम
रहेगी आज फिर रहगुज़र तन्हा

गर तेरी यादें न होती तो क्या कहूँ मैं
जाता ज़िन्दगी का हर पहर तन्हा

दरिया का पानी बाँध दिया है किसी ने
बिन पानी हुई यह नहर तन्हा

न चाँद हँसा न खु़र्शीद मुस्कुराया
तुम बिन यह शामो-फ़ज़िर तन्हा


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १७ अगस्त २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

2 replies on “हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा”

जलेंगे सारी-सारी रात आज फिर हम
रहेगी आज फिर रहगुज़र तन्हा…

good…

प्रीतिश जी आपके कॉमेण्ट में spam content थे… यह सब किसलिए?

Leave a Reply to विनय प्रजापति Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *