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मेरी ग़ज़ल

हमें जिसकी आरज़ू दमे-मर्ग भी

हमें जिसकी आरज़ू दमे-मर्ग भी उसे मेरी क़दर नहीं
उसे हासिले-सबर नहीं मुझे हासिले-ज़बर नहीं

जिसकी ख़ाहिश करके जलता है मेरा कलेजा दम-ब-दम
उसे मेरी आरज़ू-ओ-ख़ाहिश के बारे कोई ख़बर नहीं

दिल में आता है कि अपनी जान दे दें अगर वह नहीं मिलता
कम नसीब को मगर नसीब रोज़े-मशहर नहीं

हाले-दिल सुनायें किसको’ किससे कह दिल हल्का करें
कि उसके बिगैर शबो-रोज़ इक पल भी गुज़र नहीं

देखा उसे आज के रोज़ मैंने मुस्कुराते हुए मुझे देखकर
लेकिन फिर भी शायद मेरी नज़र में उसकी नज़र नहीं

हलक़ में अटके हुए हैं हर्फ़ मगर ज़ुबाँ पे नहीं आते
मोहब्बत में अभी ‘नज़र’ को वह आपसे हुनर नहीं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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