ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़1 तन्हाई के
हर गाम2 इक मंज़िल है लोग मिले रुसवाई के
अब भरोसा ही उठ गया दुनिया के लोगों पर से
अहले-जहाँ3 कब क़ाबिल थे सनम तेरी भलाई के
चाक जिगर यूँ फड़का कि तड़प के फट गया
ऐजाज़े-रफ़ूगरी4 कैसा तागे टुट गये सिलाई के
वो फ़ज़िर5 के रंग वो शाम का हुस्न अब कहाँ
चंद कुछ निशान थे सो मिट गये तेरी ख़ुदाई के
हिज्र6 के रंग में सराबोर7 हैं अब मेरी रातें
काँटों के बिस्तर पे बिताता हूँ अब दिन जुदाई के
करवटें बदल-बदल के मेरी रातें गुज़रती हैं
नसीब नहीं अब मुझे हुस्न तेरी अँगड़ाई के
शब्दार्थ:
1. मात्र; 2. क़दम; 3. दुनिया वाले; 4. रफ़ूगरी का जादू; 5. भोर; 6. विरह; 7. भीगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४