इक बार आ जा तू, इक बार आ जा तू
इन सुरमई अखियों में बस जा तू
यह राहें निहार-निहार के थक गया हूँ
इक बार आ जा तू, इक बार आ जा तू
इन साँसों में घुल जा, इन धड़कनों में बस जा
रहता हूँ जिनमें, उन ख़ाबों में आ जा तू
यह सूनी-सूनी राहें, यह ख़ामोश-ख़ामोश रातें
यह सब याद करती हैं अपनी बीती बातें
इक बार आ जा तू, इक बार आ जा तू
इन सुरमई अखियों में बस जा तू
यह राहें निहार-निहार के थक गया हूँ
इक बार आ जा तू, इक बार आ जा तू
वह चेहरा जो डूबा था हुस्ने-माहताब में
उन आँखों उन लबों उन ज़ुल्फ़ों का दीदार दे
इक बार आ जा तू, इक बार आ जा तू
इन सुरमई अखियों में बस जा तू
यह राहें निहार-निहार के थक गया हूँ
इक बार आ जा तू, इक बार आ जा तू
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
One reply on “इक बार आ जा तू”
jin khwabo mein rahta hun unmein aaja tu,bahut khubsurat