इक ज़हर का प्याला पी लिया है
तेरे बिग़ैर यह लम्हा जी लिया है
ऐ सौदाई, ऐ हरजाई
बेवफ़ाई न कर, कर थोड़ी वफ़ा
ऐ सौदाई, ऐ हरजाई
काँच के सामान से खेला नहीं जाता
काँच के सामान को तोड़ा नहीं जाता
तोड़ के फिर जो इसे बटोरा जाये तो
चुभ जाता है ख़ून निकल आता है
सँभाल के रखो इसे सँभाला जाता है
इसने न जाने कितना दर्द सहा है
इक ज़हर का प्याला पी लिया है
तेरे बिग़ैर यह लम्हा जी लिया है
तन की पीड़ा हो तो मैं सह लूँ
मन की पीड़ सही न जाये
कहो तो कोई याद मैं भुला दूँ
पर तुझको भूला नहीं जाये
प्यार इक दफ़ा में ही हो जाता है
दुबारा इसको बे-मन किया जाता है
पहली दफ़ा तो दिल ख़ुद आता है
दुबारा इसका सौदा किया जाता है
सौदे में नफ़ा होता है नुकसाँ होता है
हमने जो किया क्या तुमने किया है
इक ज़हर का प्याला पी लिया है
तेरे बिग़ैर यह लम्हा जी लिया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२