इस पल से उस पल तक तुमको ही चाहेंगे
कहता है जो कुछ दिल उसको ही मानेंगे
इस पल से उस पल तक तुमको ही चाहेंगे
चाहे दो कोई भी सज़ा हम तुम्हारे ही रहेंगे
चाहे हो कोई ख़फ़ा हम तुम्हें अपना मानेंगे
यह दूरियाँ अपने दिलों के दरम्याँ न रखेंगे
सच कहती हैं आँखें जब तुमको देखती हैं
राज़ दिल के खोलती हैं, इशारों में बोलती हैं
इस पल से उस पल तक तुमको ही चाहेंगे
कहता है जो कुछ दिल उसको ही मानेंगे
इस पल से उस पल तक तुमको ही चाहेंगे
थोड़ा क़रीब और मुझे तेरे दिल के आना है
इन दो आँखों में तेरा हर ख़ाब सजाना है
सब कुछ भूल गया याद कुछ नहीं तेरे सिवा
गुस्ताख़ियाँ नादानियाँ जाने अनजाने होती हैं
जब-जब देखूँ तुम्हें पता नहीं क्यूँ होती हैं
चाँद-सा चेहरा जब है तेरा कैसे न हम देखेंगे
एक दिन भी जाने कैसे बिन तेरे हम काटेंगे
इस पल से उस पल तक तुमको ही चाहेंगे
कहता है जो कुछ दिल उसको ही मानेंगे
इस पल से उस पल तक तुमको ही चाहेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९