जाने कैसी तन्हाई रहती है महफ़िले-यार में
दिल में अब भी साँस लेते हैं वह पुराने नाम
तुमने मुझे भुलाके उसे याद रखा, तेरी अदा है!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
जाने कैसी तन्हाई रहती है महफ़िले-यार में
दिल में अब भी साँस लेते हैं वह पुराने नाम
तुमने मुझे भुलाके उसे याद रखा, तेरी अदा है!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
2 replies on “जाने कैसी तन्हाई रहती है”
बढिया!
जाने कैसी तन्हाई रहती है महफ़िले-यार में
दिल में अब भी साँस लेते हैं वह पुराने नाम
बहुत-बहुत शुक्रिया!